यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
मेरी माशूका मेरे साथ सुहागरात मना कर मेरी बीवी होने का अहसास लेना चाहती थी. मैंने भी उसकी यह तमन्ना पूरी करने की सोची. ये सब मैंने कैसे किया?
मैं- ज़ारा, मुझे नींद आ रही है तुम मुझे तीन बजे उठा देना!
ज़ारा- क्यों कहीं जाना है?
मैं- हां मिलना है किसी से!
ज़ारा- किससे मिलना है?मैं- यार एक तो तुम आजकल सवाल बहुत ज्यादा करने लग गयी हो!
ज़ारा- मैं तो बस ऐसे ही पूछ लेती हूं! आप ही आजकल चिड़चिड़े हो गये हो!मैं- छोड़ो तुम! बस मिलना है किसी से!
ज़ारा- फाईनेंसर से?पकड़ा गया.
चोर को चोरी करते रंगे हाथ पकड़ लिया ज़ारा ने!
अब कोई जवाब ही नहीं था तो क्या कहता- तुम्हें कैसे पता चला?
ज़ारा- वो छोड़ो! कितने में तय हुआ?
मैं- नौ परसेंट पर मंथ!
ज़ारा- मेरा पैसा हराम का नहीं है जान!
मैं- मुझे पता था तुम यही जिद करोगी इसलिए मैंने तुम्हें नहीं बताया!
ज़ारा- ठीक है मुझे ब्याज समेत लौटा देना! जितना आपका मन करे!
मैं- नहीं! मैं तुमसे पैसे नहीं ले सकता!
ज़ारा- जान मुझे दुख होता है!
मैं- अब इस बारे में कोई बात नहीं! मुझे तीन बजे उठा देना!
ज़ारा- जान!
मुझे बांहों में भर लिया और एक-दूसरे के आगोश में लिपटे हम सो गये.
जब उठा तो देखा शाम के साढ़े चार बज चुके थे.
ज़ारा किचन में थी तो मैं उठकर किचन में गया.
मैं- तुमने मुझे जगाया क्यों नहीं?
ज़ारा- पहले चाय पी लें?
मैं- ठीक है ले आओ!
मैं अंदर चला गया, कपड़े बदले.
तब तक वो भी चाय ले आई.
मैं- ज़ारा!
ज़ारा- हम्म?
मैं- तुम्हें पता था कि मुझे गुप्ता से मिलना जाना है तो मुझे जगाया क्यों नहीं?
ज़ारा- क्योंकि मैं नहीं चाहती कि आप गुप्ता से पैसा उधार लें!
मैं- यार मैं इसके अलावा क्या कर सकता हूं?
ज़ारा- अभी लगभग आधे घंटे में कैब आ जायेगी, आप एटीएम जा रहे हैं!
मैं- क्यों?
ज़ारा- आपको जितने पैसे चाहियें, मेरे एकाउंट से निकाल लेना!
मैं- पक्का?
ज़ारा- जान आप हुक़्म करो!
मैं- एक करोड़!
ज़ारा सोच में पड़ गयी लेकिन कुछ ही देर में बोली!
ज़ारा- कल दे दूंगी!
मैं- कहां से लाओगी?
ज़ारा- पापा से बोल दूंगी!
मैं- वो ये नहीं पूछेंगे कि इतनी बड़ी रकम की कहां जरूरत पड़ गयी?
ज़ारा- वो मेरा काम है!
मैं- मतलब मेरे लिये जो कुछ दिनों का प्यार है, उसके लिये अपने पैदा होने से पहले तक के प्यार को धोखा दे दोगी?
ज़ारा- जान …
मैं- मुझे कुछ नहीं सुनना!
कहकर मैं चला गया.
पैसे लिये और सीधा ज्वेलरी शॉप पर पहुंचकर एक नथ और मांग-टीका खरीद लिया!
इतनी सारी खरीदारी मैंने क्यों की?
क्योंकि ज़ारा का जन्मदिन आने वाला था और सुहागरात से बेहतर कोई तोहफा मैं उसे नहीं दे सकता था.
यही वजह थी कि मैं इसमें कोई कमी नहीं छोड़ना चाहता था.
ये सब लेकर मैं घर के लिये चला तभी एक दोस्त का फोन आया.
कुछ ऐसी बातें हुयीं कि दिमाग खराब हो गया.
रात के लगभग आठ बजे मैं घर पहुंचा.
ज़ारा- आपका फोन ही नहीं लग रहा!
मैं- मुझे भूख लगी है.
वो समझ गयी कि मेरा मूड खराब है तो तुरंत खाना लगा दिया.
मैं हाथ-मुंह धोकर आया तो तुरंत उसने एक कौर तोड़ कर हाथ में ले लिया.
मैं खुद में ही खोया हुआ था तो मैंने ध्यान नहीं दिया और खाना खाने लगा.
ज़ारा- जान!
मैं- हउम्म?
ज़ारा- मेरे हाथ से नहीं खाओगे?
मैं- ओह सॉरी! लाओ!
उसने मुझे खिलाया, मैंने उसे और हम चुपचाप खाना खाने लगे.
खाना हुआ तो मैंने उठकर कुल्ला किया और जा लेटा.
कुछ देर में ज़ारा आयी और मेरे कंधे पर सिर टिकाकर मेरी छाती पर उंगली चलाते हुये बोली- क्या हुआ जान?
मैं- कुछ नहीं! बस ऐसे ही थोड़ा मूड ऑफ है!
ज़ारा- क्यों पैसे नहीं मिले क्या?
मैं- मिल गये थे!
ज़ारा- कहां हैं?
मैं- खर्च दिये!
ज़ारा- सारे?
मैं- हां!
ज़ारा- कितने लिये थे?
मैं- तुम क्या करोगी जानकर?
ज़ारा- कम से कम किसी को तो पता हो कि कहां से कितना पैसा आया और कहां कितना खर्चा!
मैं- कहां खर्चने को क्या … मैं बार में उड़ाकर आया हूं या वेश्याओं पर लुटाकर?
ज़ारा- आप कहां की बात कहां ले जा रहे हो?
मैं- तुम पूछ ही ऐसे रही हो!
ज़ारा- ऐसा मैंने क्या पूछ लिया?
मैं- तो ये क्या है? उटपटांग सवालात!
ज़ारा- ये जो आप की आदत है ना सबको ठोकर पर रखने की! किसी दिन ले बैठेगी आपको!
मैं- बैठने दो!
यह कहकर मैं उठा और दूसरे कमरे में जाकर लेट गया!
नींद तो आ नहीं रही थी बस ऐसे ही करवटें बदलता रहा.
रात करीब दस बजे मुझे प्यास लगी तो मैंने पानी पिया और गैलरी में चला गया.
दिमाग अब तक फ्रेश हो ही चुका था रात की ठंडक ने मूड भी ठीक कर दिया.
मैं अंदर आया तो देखा ज़ारा के बेडरूम का दरवाजा खुला पड़ा है और लाइट भी जल रही है.
बेडरूम के अंदर गया मैं … तो देखा ज़ारा बिस्तर पर बैठी घुटनों में चेहरा दिये सिसकियां ले रही है.
मैं उसके पास जा बैठा- ज़ारा!
वो कुछ ना बोली तो मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा लेकिन उसने मेरा हाथ हटा दिया.
मैं- ज़ारा!
ज़ारा- मुझे आपसे कोई बात नहीं करनी!
मैं- सॉरी यार! मेरा मूड खराब था!
वो और ज्यादा सिसकने लगी.
अब मैंने उसे गले लगा लिया और उसके सिर पर हाथ फिराने लगा.
मैं- सॉरी यार! अब रोओ मत!
ज़ारा- जान मुझे डर लगता है आपके लिये! मैं इसलिये सवालात करती हूं!
मैं- जानता हूं लेकिन गुस्से में बेवकूफी कर बैठता हूं.
ज़ारा- और पता है मैं कितनी तड़पती हूं?
मैं- सॉरी यार अब रोना बंद करो नहीं तो मैं भी रो दूंगा!
ये कहते-कहते मेरा गला भर्रा गया तो ज़ारा उठी, अपनी आंखें पौंछीं और सीधे पैर कर बैठ गयी.
मैं भी आंखें पौंछकर उसकी गोद में सिर रखकर लेट गया.
थोड़ी देर बाद मैं बोला- ज़ारा!
ज़ारा- हम्म?
मैं- चुदाई करें?
ज़ारा- मेरा मन नहीं है जान!
मैं- लेकिन मेरा है!
ज़ारा- रहने दो ना जान!
मैं- मान जाओ प्लीज!
ज़ारा- ठीक है!
अब मैंने उसकी टीशर्ट निकाली और उसे किस करने लगा.
कभी उसकी जीभ से जीभ लड़ाता तो कभी उसकी जीभ चूसता! थोड़ी ही देर में ज़ारा भी चुदासी होने लगी.
मैंने उसकी ब्रा का हुक खोलकर चूचियों को नंगा किया और थोड़ा नीचे होकर चूचियां चूसने लगा तो ज़ारा आहें भरने लगी और मेरी टीशर्ट निकाल दी.
अब हम उठे तो मैंने उसकी पैंटी और उसने मेरे बाकी बचे कपड़े निकाल दिये और हम घुटनों के बल खड़े-खड़े ही एक दूसरे को चूमने लगे.
मैंने उसे लिटाया और 69 की पोजीशन में आ गया.
वो मेरा लंड चूसने लगी और मैं उसकी चूत में जीभ डालने लगा साथ ही एक हाथ से उसकी क्लिट को रगड़ने लगा.
कुछ ही देर में ज़ारा गर्म होकर एकदम लाल हो गयी जैसे कि हल्की सी खरोंच से ही कहीं पर भी खून छलछला जायेगा.
ज़ारा- आ … ह … जान … सी!
मैं उठा और उसके ऊपर आकर लंड को चूत के मुहाने पर रखा और एकदम से घुसा दिया.
ज़ारा ने एक मीठी सी आह भरकर आंखें बंद कर लीं.
अब मैंने धक्के देने शुरू किये तो वो आहें भरने लगी.
जैसे जैसे झटके तेज होते गये वैसे-वैसे ज़ारा की आहें भी तेज और मादक होने लगीं.
मैं रुका और उसकी कमर के नीचे हाथ डालकर उसे पलट लिया.
अब मैं नीचे और वो ऊपर आ गयी. ज़ारा लंड पर ऊपर-नीचे होने लगी.
कुछ ही देर में वो झड़ने वाली थी क्योंकि वो तेज-तेज और ऊंची आहें भरने लगी तो मैंने उसे रोककर अपने ऊपर लिटा लिया और उसके कूल्हों को थोड़ा सा ऊपर उठाकर नीचे से झटके देने लगा और कुछ ही देर में हम दोनों एक साथ झड़ गये! हमने एक-दूसरे को बांहों में कस लिया और किस करने लगे थोड़ी देर में जब लंड मुर्झाकर बाहर आया तो हम दोनों उठकर बाथरूम में गये और खुद को साफ कर बिस्तर पर आ लेटे!
हम दोनों एक-दूसरे से लिपटे हुये सो गये.
सुबह हमने नाश्ता किया और वो अपने कमरे में चली गयी.
थोड़ी ही देर में वापस आयी वो शादी का जोड़ा और हार लेकर!
ज़ारा- ये किसके लिये लाये हो?
मैं- तुम्हारे लिये!
ज़ारा- मैंने तो नहीं मंगवाया!
कहते हुये वो सिसकने लगी.
मैं- मैं ये सब तुम्हारे लिये ही लाया हूं!
ज़ारा- क्यों?
मैं- तुम ही रोलप्ले करना चाहतीं थीं.
ज़ारा- फिर बताया क्यों नहीं?
मैं- मैं सरप्राइज़ प्लान कर रहा था और तुमने मेरे पूरे प्लान की अम्मी-आपी कर दी!
ज़ारा- पता है मैं कितना डर गयी थी?
मैं- क्यों डरना? मैं हूं ना तुम्हारे साथ!
ज़ारा- कहीं किसी और के लिये मुझे छोड़ ना दो!
मैंने उसे बिस्तर पर बैठाया और खुद भी पास ही बैठ गया.
उसने मेरे कंधे से सिर लगा लिया.
मैं- ज़ारा भरोसा रखो! ऐसा कभी कुछ नहीं होगा!
ज़ारा- आप मेरे साथ सुहागरात मनायेंगे?
मैं- हां जान!
ज़ारा- मेरा सपना …
मैं- अब सच होने वाला है!
ज़ारा- होने वाला है! मतलब आज नहीं?
मैं- नहीं!
ज़ारा- फिर कब?
मैं- सुहागरात! तुम्हारे लिये बर्थडे गिफ्ट होगी!
कहते हुए मैंने उसे वो नथ और मांग-टीका भी दिया.
तो उन्हें देखकर वो बोली- ये आप असली क्यों लाये?
मैं- तो?
ज़ारा- आर्टिफीशियल ले आते!
मैं- तुम्हारा दिमाग ख़राब है? तुम्हारे लिये नकली गहने लाऊंगा मैं?
ज़ारा- जान ये कितने महंगे आये होंगे!
मैं- तो क्या हुआ?
ज़ारा- चलो, मेरे अकाउंट से निकाल लो पैसे!
मैं- वाह! तुम्हारे ही पैसों से तुम्हें ही तोहफे दूं?
ज़ारा- लेकिन …
मैं- लेकिन-वेकिन कुछ नहीं इन्हें रखकर आओ!
वो गहने रखकर आई!
मैं- अब तीन दिन बचे हैं तुम्हारे पास! गर्लफ्रेंड होने की जितनी हसरतें हैं पूरी कर लो.
ये कहते हुये मैंने उसका हाथ पकड़कर लंड पर रख दिया!
वो पैंट के ऊपर से ही लंड सहलाने लगी और मैं उसे किस करने लगा.
देखते ही देखते हमारे कपड़े उतर चुके थे.
मैं उसकी चूचियां चूसने लगा तो वो एकदम से सिसकारियां लेने लगी.
इतनी मीठी सिसकारियां!
इतनी मीठी आहें!
इन पर तो जान भी वार दूं तो कम है!
कुछ देर बाद ज़ारा ने मेरे कंधों से मुझे नीचे धकेला.
मैं पीछे हुआ तो उसने लंड पकड़कर अपनी चूत पर रखा. मैंने धक्का दिया और पूरा लंड उसकी चूत में घुस गया.
वो आहें भरने लगी- आह … जान … तेज करो … आह … उह …!
कुछ ही देर में उसने मुझे बांहों में कसा और पलट गयी.
अब मैं नीचे और वो ऊपर थी. वो लगी लंड पर उछलने और मेरे हाथ पकड़कर अपनी चूचियों पर रख दिये तो मैं उसकी चूचियां दबाने लगा.
ज़ारा एकदम पागल सी हो गयी.
मैंने उसे घोड़ी बनने को कहा तो लंड पर बैठे-बैठे ही घूम गयी और अपने हाथ टिकाकर झुकने लगी तो मैं भी साथ ही साथ उठ गया.
इस तरह बिना लंड निकाले ही वो घोड़ी बन गयी.
अब मैंने शुरू कर दी ताबड़तोड़ चुदाई!
दोस्तो, सेक्स के दौरान जब हम पोजीशन बदलते हैं तो अक्सर चूत से लंड को बाहर निकाल लेते हैं.
इससे क्या होता है कि आपकी साथी और आपकी भी कामुकता कम हो जाती है, औरत ठंडी पड़ने लगती है.
हमेशा याद रखें कि औरत झड़ने से पहले और पुरुष झड़ते समय ही सेक्स का आनंद महसूस करता है! इसलिये औरत को ठंडा न पड़ने दें.
ऐसी पोजीशन्स ट्राई करें कि लंड को भी बाहर ना निकालना पड़े और पोजीशन भी बदल जाये.
खैर, मैं झटके पे झटके दे रहा था तो ज़ारा झड़ने लगी और नीचे होने लगी.
मैं भी झड़ने के करीब ही था और नीचे होते-होते हम दोनों ही झड़ गये.
वो छाती के बल लेट गयी और मैं उसकी कमर पर पसर गया.
काफी देर बाद मैं उठा, अपना लंड और उसकी चूत साफ की.
मैं- उठो! अब चाय बना लो!
वो उठी, मेरे गाल पर चूमा और नंगी ही किचन में चाय बनाने चली गयी.
पीछे-पीछे मैं भी किचन में पहुंच गया.
उसने मुझे देखा तो मैंने आंख मारी.
वो मुस्कुरायी और एक घुटना किचन की कैबिनेट पर रख दिया. उसकी चूत और गांड खुलकर सामने आ गये.
मैंने आव देखा ना ताव और सीधा घुसा दिया उसकी चूत में पूरा लंड.
ज़ारा- आह जान! हसरतें तो आप पूरी कर रहे हो!
ये कहकर अपने दोनों पैर जमीन पर रख लिये और हाथ कैबिनेट पर.
मैं दे दनादन धक्के देने लगा और उसकी चूचियां दबाने लगा.
वो भी अपनी क्लिट रगड़ने लगी.
कुछ ही देर में ज़ारा- जा … न … मैं … आ … रही हूं!
कहते कहते झड़ गयी और नीचे होने लगी.
तो मैंने उसे फर्श पे ही घोड़ी बनाकर उसकी गांड में लंड डाल दिया.
ज़ारा- आ … ह जान!
मेरा हाथ पकड़ अपनी चूची पर टिका दिया!
मैंने इशारा समझा और दोनों हाथों से उसकी चूचियां दबाते हुये उसकी गांड मारने लगा.
आज मुझे भी पता नहीं क्या हो गया था?
शायद मैं भी ये तीन दिन खुलकर जीना चाहता था.
ताबड़तोड़ चुदाई!
चीखें निकलीं ज़ारा की … लेकिन मैं नहीं रुका.
जब झड़ा तो पता नहीं कितनी देर हम फर्श पर ही पड़े रहे.
दो दिनों में हमने घर का कोई कोना ऐसा नहीं छोड़ा जहां चुदाई ना की हो!
कहानी जारी रहेगी.