यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
नमस्ते फ्रेंड्स! अपनी सुहागरात की पहली चुदाई की कहानी सुना कर सुहाना चुप हो गई.
तब मैं बोला- मुझे तुम्हारे हनीमून तक की पूरी कहानी सुननी है, पर उससे पहले क्या मैं उस चादर को देख सकता हूँ?
‘हाँ…’ वो बोली और उठ कर दूसरे कमरे में चली गई.
इधर उसके कमरे से बाहर निकलते ही मैंने अपने पूरे कपड़े उतार दिए और जिस तरह से उसने अपने पति (साहिल) की पोज बताई थी, ठीक उसी पोज में मैं खड़ा हो गया और उसकी कहानी सुन कर मेरे लंड वैसे भी टाईट हो चुका था, इसलिये लंड 90 डिग्री के कोण पर टनटनाया हुआ था।
इसी बीच सुहाना वो चादर लेकर आई और मुझे पूर्ण नग्न देख कर वहीं ठिठक कर रूक गई और मुझे गौर से ऊपर से नीचे देखने लगी. जब उसके नजर मेरे नागराज पर पड़ी तो बस इतना ही बोल पाई- हाय राम, मेरे साहिल जितना तुम्हारा भी है।
मैं कदम बढ़ाते हुए उसके पास गया और चादर लेकर जमीन पर बिछा कर बैठ गया और जब मैंने उसका हाथ पकड़ा तो वो भी आकर बैठ गई और जहाँ-जहाँ खून के धब्बे जो अब हल्के पड़ चुके थे वहाँ अपने हाथ फेरने लगी।
उसकी आँखों में आंसू थे।
मैंने उसके आंसू पोंछते हुए कहा- अगर तुम चाहो तो मेरे इस दोस्त को अपनी सहेली का दोस्त बना कर अपने साहिल की कमी को पूरा कर सकती हो।
वो मेरे तरफ देखने लगी.
मैंने उसके सिर को अपने सीने से लगाया और उसके बालों में हाथ फेरने लगा। धीरे-धीरे मैंने उसकी पीठ को सहलाते हुए उसके टीशर्ट के अन्दर डाल दिया, जहाँ उसके चिकने जिस्म को सहलाते हुए मेरे हाथ उसके मम्मे के पास पहुंच गये थे और उसके मुलायम मम्मों को मैं दबाने लगा.
सुहाना ने कोई विरोध नहीं किया और इसी बीच उसकी टी-शर्ट भी उसके जिस्म में अलग हो गई। मेरे हाथ केवल और केवल उसके मम्मों से खेल रहे थे और वो चुपचाप आँखें बन्द किये हुए मेरे सीने से लगी थी।
इसी बीच मौका पाकर मैंने उसकी स्कर्ट को भी उसके जिस्म से अलग कर दिया और मेरा एक हाथ फिसलता हुए उसकी चूत पर चला गया.
थोड़ा और नीचे जाने पर उसका गीलापन मेरी उंगली में लग चुका था। मैंने अपनी एक उंगली उसकी चूत के अन्दर डालना चाही तो वो अन्दर नहीं गई क्योंकि सुहाना ने पैर सिकोड़ कर रखे थे. लेकिन जब उसे महसूस हुआ कि मैं उसकी चूत के अन्दर उंगली डालना चाहता हूँ तो उसने अपने पैरों को फैला दिया।
मैंने अपनी उंगली उसकी चूत में डाला और उसकी मलाई को लेकर अपने मुंह में डाल लिया, सुहाना मेरी तरफ देखने लगी, प्रत्युत्तर में मैंने कहा- आज हमारी और तुम्हारी दोस्ती हुई है और इसलिये तुम्हारी मीठी मलाई का स्वाद ले रहा हूँ।
वो मुझे अपनी नशीली आँखों से देखती जा रही थी, फिर वो मुड़कर मेरी गोद में बैठ गई और अपने होंठ को मेरे होंठों से मिला दी और जितनी देर हम दोनों एक दूसरे के होंठ चूसते रहे, उतनी ही देर तक सुहाना के हाथ मेरे लंड पर चलते रहे.
पता नहीं कब हम दोनों उस चादर के ऊपर एक दूसरे से चिपक कर लेट गये और वो मेरे लंड को पकड़कर अपनी चूत पर बहुत जोर-जोर से चला रही थी।
वो बोली- सक्षम, काफी दिनो से मैं बेचैन थी, मेरी बेचैनी मिटा दो, फिर बाद में जैसा कहोगे वैसा ही प्यार मैं तुमको करूंगी।
मैं उसकी बातों को समझ गया और उसको सीधा लेटाकर उसके बीच में आ गया और अपने लंड को उसकी चूत में डालने लगा, समझ में आ गया था कि उसने काफी समय से इस सुख को प्राप्त नहीं किया है क्योंकि उसकी चूत काफी टाईट थी, मुझे भी लगा कि मैं सुहागदिन मना रहा हूँ.
खैर थोड़ी कोशिश करने के बाद लंड उसकी चूत में जा चुका था।
सुहाना अपनी आँखें बन्द करके हर पल का आनन्द लेने को तैयार थी। मैंने लंड उसकी चूत में डाला और उसके ऊपर झुककर उसके मम्मे को बारी बारी से चूसने लगा. जब सुहाना को अहसास हुआ कि मैं अभी उसकी चुदाई नहीं कर रहा हूँ, वो खुद ही अपनी कमर को हिलाकर अपनी चूत के गहराई की मथाई करने लगी, उसे अन्दर बहुत खुजली हो रही थी और वो उस खुजली को बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी, वो लगभग चीखते हुए बोली- सक्षम, जोर से चुदाई करो, जितनी ताकत है तुम्हारे में सब लगा दो, मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा है!
उसकी बात सुनकर मैंने उसके मम्मे चूसना बन्द किया और धक्का लगाने लगा, वो पहले धक्के से ही आह-आह करने लगी और तेज-तेज धक्का लगाने के लिये बोलने लगी.
मेरी स्पीड और बढ़ गई.
‘आहह सक्षम और तेज प्लीज, आहहह और तेज, उम्म्ह… अहह… हय… याह… इस चूत की प्यास बुझा दो, काफी दिनों से प्यासी है मेरी सहेली… और जोर से चोदो!
मेरी स्पीड उसके आहें भरने से बढ़ती जा रही थी.
‘आहह हहह बहुत अच्छा लग रहा है… और जोर से… आहह मेरी जान, तुम मुझे बहुत मजा दे रहे हो!’
हम दोनों जमीन पर केवल उस चादर के ऊपर थे जिसमें सुहाना और साहिल की यादें थी और मैं घुटने के बल उसकी चूत चुदाई कर रहा था, अब मेरा घुटना दर्द करने लगा, तो मेरी स्पीड कम हो गई.
तभी सुहाना फिर बोली- नहीं सक्षम, रूको मत, मुझे पता है कि तुम्हें दर्द हो रहा है, लेकिन तुम मेरी प्यास बुझा दो। आहहहह आओ मेरे राजा, आओ, फिर तुम जैसा कहोगे ये सुहाना तुम्हारे लिये सब करेगी, आओ, आहहहहह आओ, बस थोड़ा और, मैं झड़ने वाली हूँ!
अब उसकी आह ओह और तेज हो गई- सक्षम मैं झरने वाली हूँ, आह मैं झर रही हूँ।
इतना कहने के साथ साथ वो ढीली हो गई, लेकिन अभी मैं झरा नहीं था और मेरा लंड अभी भी कड़क था, मैंने सुहाना से मेरे ऊपर आने को बोला लेकिन वो बोली- मुझे ऐसे ही मजा आ रहा है, अभी तुम मेरी बात मानो, फिर मैं तुम्हारी बात मानूंगी!
अब मुझे चुदाई मजा नहीं सजा लग रही थी, मुझे भी खलास होना था, मैं रूका और फिर खड़ा हो गया और सुहाना के कमर को पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया और फिर उसकी चुदाई शुरू कर दी।
सुहाना आधी हवा में थी, लेकिन उसने कोई विरोध नहीं किया। हाँ… जितना उत्साह उसमें झड़ने से पहले था अब उतना नहीं था।
मैंने अपने पिस्टन को चालू रखा और उसकी चूत को गराईन्ड करता रहा, बस थोड़ी देर बाद मुझे लगा कि अब मैं भी झड़ने वाला हूँ। मैंने सुहाना से कुछ नहीं बोला और चुदाई चालू रखी।
जब मुझे लगा कि अब मैं निकलने वाला हूँ तो मैंने धीरे-धीरे सुहाना को उसी चादर पर लेटा दिया और फिर उसके ऊपर औंधे मुंह गिर पड़ा, इधर मैं सुहाना के ऊपर गिरा, उधर मेरे लंड ने पानी छोड़ना शुरू किया, सुहाना ने झट से अपनी आँखें खोली, मुझे देखा लेकिन बोली कुछ नहीं…
जब मेरे वीर्य से उसकी चूत भर गई, तो मैंने अपना लंड बाहर निकाला, मेरा लंड बाहर निकलते ही मेरे और सुहाना के मिलन का रस भी उसकी चूत से बहता हुआ उसी चादर में गिरने लगा।
बस मेरे मुंह से बरबस ही निकल पड़ा- लो सुहाना, अब इस चादर ने तुम्हारी और साहिल की यादों के साथ-साथ मेरे और तुम्हारे यादों को भी संजो लिया है।
इतना कहने के साथ मैं उसकी बगल में लेट गया और अपनी बांहों को फैला कर उसके सिर को अपने हाथ में ले लिया और सुहाना को अपने सीने से सटा लिया.
सुहाना ने भी अपनी टांग को मेरे टांग पर चढ़ा दी।
हम लोग कुछ देर इसी तरह लेटे रहे, उसके बाद सुहाना उठ गई, मैंने इशारे से पूछा- कहाँ?
‘पेशाब करने…’ वो बिन्दास बोली और चली गई.
मैं उसे जाते हुए देख रहा था और मेरी नजर उसकी गांड पर टिकी हुई थी जो घड़ी के पेन्डुलम की तरह ऊपर नीचे हो रही थी।
जब सुहाना पेशाब करके आई तो मैं भी उससे बाथरूम का रास्ता पूछकर पेशाब करने चला गया।
मैं पेशाब करके लौटा तो देखा कि सुहाना अपने ऑफिस ले जाने वाले टिफिन को खोलकर बैठी थी, उसने मुझे भी उसके साथ खाने का ऑफर दिया। मैंने उसके साथ बैठकर खाना खाया। खाना खाने के बाद एक बार फिर हम दोनों सटकर सोफे पर बैठे थे और सुहाना ने अपने सिर को मेरी छाती से टिका दिया।
तभी मैंने धीरे से पूछा- सुहागरात की उस पहली चुदाई के बाद क्या हुआ था?
कहानी जारी रहेगी.
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